Editorial: बांग्लादेश में हक की आवाज उठाई तो हिंदू कट्टरपंथी हो गए
- By Habib --
- Thursday, 28 Nov, 2024
When Hindus raised their voice for their rights in Bangladesh they became fundamentalists
When Hindus raised their voice for their rights in Bangladesh, they became fundamentalists: बांग्लादेश में बीते साल भर के अंदर जिस प्रकार से हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, वह अब जुल्म की अंतहीन कहानी बन चुका है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस्कॉन जोकि पूरे विश्व में भगवान श्रीकृष्ण और गीता की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार में जुटा संगठन है, उस पर धार्मिक कट्टरपंथी संगठन होने की मुहर लगा दी गई है। प्रश्न यह है कि अपनी धार्मिक आजादी और अपने वजूद के लिए संघर्ष करना क्या कट्टरपंथी हो गया। बांग्लादेश में हिंदू समाज की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई है और वहां की कार्यवाहक सरकार कुछ नहीं कर पा रही या यह कह सकते हंै कि कुछ करना ही नहीं चाहती।
आखिर बांग्लादेश एक पूरी तरह से मुस्लिम देश बनने की दिशा में क्यों बढ़ गया है, क्या इसे कट्टरपंथी होना नहीं कहेंगे और किस अदालत में इस बारे में सरकार यह कहेगी कि हां देश के अंदर मुस्लिम समाज की ओर से कट्टरपंथी वारदातें अंजाम दी जा रही हैं। पूरे देश में हिंदुओं के घर, मंदिर, प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। देश में निर्वाचित सरकार के जबरन पतन से पहले ही हिंदुओं को निशाने पर रखा जा रहा था और सरकार गिरने के बाद से तो जैसे कट्टरपंथियों की बांछें ही खिल गई, क्योंकि उन्हें सब कुछ अपनी मर्जी का करने का मौका मिल गया। देश के अंदर इस समय हिंदू समाज के लोग इतने निरीह हो गए हैं, कि उनके साथ कभी भी और कोई भी वारदात अंजाम दी जा सकती है।
बांग्लादेश में जो हो रहा है, निश्चित रूप से उसका सीधा असर भारत पर पड़ना लाजमी है। भारत ने ही बांग्लादेश की स्थापना में योगदान दिया था और बरसों तक भारत-बांग्लादेश के बीच समन्वय बना रहा। लेकिन पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश में जहर के ऐसे बीज फैलाएं हैं, जिसने न केवल देश के युवाओं को बगावती बना दिया अपितु भारत विरोध में जलते पाकिस्तान ने बांग्लादेशियों को हिंदुओं के खिलाफ नफरत से भर दिया। सबसे अचरज की बात यह है कि इस समय बांग्लादेश दो धर्मों में बंट गया लगता है, एक मुस्लिम और दूसरा हिंदू धर्म। कोई नहीं चाह रहा है कि हिंदू और दूसरे धर्म के लोग यहां रहें। इन हालात में बांग्लादेश बर्बादी की ओर बढ़ चला है।
यहां न उद्योग-धंधे संचालित हो रहे हैं और न ही मानवाधिकारों का कोई मूल्य रह गया है। अगर बाड़ ही फसल को खाने लगे तो क्या कहेंगे। इसका उदाहरण इससे भी मिलता है कि सरकार के अटार्नी जनरल ने हाईकोर्ट में कहा है कि इस्कॉन एक कट्टरपंथी धार्मिक संस्था है। हाईकोर्ट ने सरकार से इस्कॉन की गतिविधियों का ब्योरा मांगा था। क्या बांग्लादेश की अदालत इस तरफ गौर फरमाएगी कि देश के अंदर तमाम कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन संचालित हो रहे हैं और उनकी गतिविधियों की जानकारी सरकार को होने के बावजूद उन पर कार्रवाई नहीं की जा रही। आखिर इसे घोर नाइंसाफी नहीं कहा जाएगा तो और क्या कहा जाएगा।
बांग्लादेश में हिंदुओं से पक्षपात के और उदाहरण यह हैं कि अंतरिम सरकार ने अजान और नमाज के वक्त हिंदुओं पर कोई भी पूजन कार्य करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कितना विडम्बनापूर्ण है कि बांग्लादेश को अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों ने अपना मोहरा बना लिया है, उन्हें शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करके जो हित साधने थे, वे उन्होंने साध लिए लेकिन इस देश में रह रही जनता और खासकर अल्पसंख्यक समाज के संदर्भ में कोई आवाज नहीं उठाई है। यह सुनने में ही कितना पक्षपाती लगता है कि एक सरकार जिस पर पूरे देश की जनता की जिम्मेदारी है, वह बहुसंख्यक यानी मुसलमानों के संदर्भ में ही सोच रही है और उन्हें ही आगे बढ़ाने और उनके हितों को सुरक्षित कर रही है।
हालिया दंगों के दौरान हिंदुओं के घरों को लूटा गया है, जलाया गया है, महिलाओं पर अत्याचार हुए हैं। लोगों को मारा गया है और उन्हें देश छोड़ने को मजबूर किया गया है। उनके काम और कारोबार उनसे छीन लिए गए हैं, उनके मंदिरों पर धावा बोलकर सोची-समझी साजिश के तहत भगवान की मूर्तियों को अपमानित किया गया है और भयंकर क्षति पहुंचाई गई है। क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार यहां के हालात को नियंत्रित करने में सक्षम है। यहां के घटनाक्रम को देखकर यह बिल्कुल नहीं लगता है। जाहिर है, वैश्विक समाज को इस दिशा में काम करना होगा और यहां हो रहे हिंदुओं के दमन को रोकने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे।
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